शुक्रवार, 23 मार्च 2012

अपने बच्चों से अलग किए जाने का चरम मानसिक तनाव झेलते नॉर्वे के भारतीय दम्पति

आने वाले दिन बहुत ही व्यस्तता भरे हैं... पारिवारिक  और  सामाजिक  जिम्मेवारियों के अलावा कहानी की अगली किस्त पोस्ट करनी है...आकाशवाणी से भी एक कहानी की फरमाइश है  और डेड लाइन है..२६ मार्च (एक महीना पहले ही उनलोगों ने बता दिया था...पर तब तो लगता है..अभी बहुत समय है..कहानी की रूप-रेखा तैयार है पर फिर भी 9 में  मिनट उसे फिट तो करना बाकी ही है ) फिर भी .एक विषय इतना मन में इतना उथल-पुथल मचा रहा है कि  उस पर लिखे बिना किसी और विषय पर लिखने से उंगलियाँ इनकार कर दे रही हैं.

शायद सबकी नज़र नॉर्वे में एक भारतीय दंपत्ति के बच्चों के कस्टडी की लड़ाई पर बनी हुई है. जहाँ आठ महीने पहले अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य के तीन वर्षीय बेटे 'अभिज्ञान' और एक वर्षीय बेटी ' ऐश्वर्या '  को अपने माता-पिता के संरक्षण से लेकर फ़ॉस्टर केयर में दे दिया गया था. टी.वी. अखबारों में इस केस के बहुत चर्चे रहे...भारतीय सरकार ने भी इस केस में रूचि ली और विदेश मंत्रालय के दो अधिकारी इस समस्या को सुलझाने नॉर्वे सरकार से बातचीत करने नॉर्वे जाने वाले थे. पर उन्हें अपनी यात्रा कैंसिल करनी पड़ी क्यूंकि दो दिन पहले...अनुरूप भट्टाचार्य ने मिडिया से यह कहा कि  उनकी पत्नी मानसिक रोगी है और उसपर हमला किया है. वे अपनी पत्नी से अलग होना चाहते  हैं. एक दिन बाद ही वे अपने बयान  से पलट गए और कहा कि ' वे बहुत मानसिक तनाव में थे इसलिए ऐसा कह डाला...पति-पत्नी में कोई मतभेद नहीं है"

यानि कि मानसिक तनाव हुआ...नाराज़गी हुई तो पत्नी को पागल करार दे दिया??. अखबारों में ये ख़बरें भी आ रही हैं कि पत्नी सचमुच डिप्रेशन में है. तो ऐसी स्थिति में कौन सी महिला डिप्रेशन में नहीं होगी? वो विदेश में है जहाँ उसके पास उसके अपने करीबी लोग नहीं हैं जिनसे  अपना दुख-दर्द बाँट सके. पिछले आठ महीने से उसके दुधमुहें बच्चे उस से अलग हैं. उसके बाद से ही अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है कि बच्चे उसे मिलेंगे या नहीं? टी.वी. ..अखबारों से बातचीत में बार-बार उन्हीं बातों का दुहराव कि कैसे उस से बच्चे ले लिए गए....यह सब  उसे मानसिक तनाव नहीं देगा? 

कुछ दिन पहले बच्चों के नाना-नानी यानि कि सागरिका के माता-पिता ने दिल्ली में नॉर्वे के एम्बेसी के सामने प्रदर्शन भी किए थे और तब खबर यह थी कि बच्चे नाना-नानी को सौंपे जाएंगे. फिर खबर ये आई कि बच्चे अपने चाचा यानि अनुरूप के भाई को सौंपे जाएंगे. हो सकता है..सागरिका चाहती हों..बच्चे उनके माता-पिता को सौंपे जाएँ. और सागरिका  का कहना है कि उनसे कहा जा रहा है..वे एक एग्रीमेंट पर साइन कर दें कि बच्चों के चाचा ही उनके गार्जियन होंगें. सागरिका के इनकार करने पर अनुरूप ने उन्हें धमकी दी...घर से निकल जाने को कहा. और फिर मिडिया में सागरिका को मानसिक रोगी करार दिया. जबकि सागरिका और उसके पिता का कहना है ...सागरिका पर उसके पति अक्सर हाथ उठाते रहे हैं. 

अगर ये आरोप-प्रत्यारोपों की बात जाने भी दें. इतनी दूर से भी इतना तो समझ में आता है...कि वो औरत गहरे मानसिक तनाव में रहती होगी. भारत में नौकर-कामवालियों की सुविधा के बावजूद भी तीन साल और एक साल के बच्चों की देख-रेख में कितनी परेशानियां आती हैं. ये उस उम्र के बच्चों की माँ ही समझती है. जबकि यहाँ रिश्तेदारों का भी सहारा होता है. बच्चों को पालने  के साथ-साथ पड़ोसियों..सहेलियों..से गप-शप भी होती है..अपने अनुभव भी बांटे जाते हैं...जिस से निश्चय ही स्ट्रेस से मुक्ति मिलती है. पर विदेश में ऐसा माहौल मिलना मुश्किल है. और उस पर से तीन वर्षीय अभिज्ञान autism  का शिकार है. माँ को यह स्वीकारने में ही बरसों लग जाते हैं कि भगवान ने उनके बच्चे के साथ ही ऐसा क्यूँ किया?? अगर किसी माँ को  सिर्फ एक बच्चे की ही देखभाल करनी हो जो विकलांग हो फिर भी  सहेलियों- रिश्तेदारों की सहायता-सहानुभूति के बावजूद माँ चरम तनाव का शिकार हो जाती है. जबकि यहाँ सागरिका को ऐसे असंवेदनशील माहौल में अभिज्ञान के साथ एक वर्षीय ऐश्वर्या  की भी देखभाल करनी पड़ रही थी. 

इन सबके साथ एक अवस्था  होती है  post partum depression  की  जिसे भारत में कोई तवज्जो नहीं दी जाती. पर शरीर चाहे अमरीकी हो ब्रिटिश हो या भारतीय...उसे दर्द का अहसास तो एक सा ही होता है. कहते हैं प्रसव के बाद एक महिला ,महीनो तक डिप्रेशन की शिकार रह सकती है. शायद हमारी पिछली पीढ़ी इस बात को ज्यादा अच्छी तरह समझती थी और तभी...प्रसव के बाद, चालीस दिनों तक स्त्री को गृह-कार्य.. उसके झंझटों से अलग रखा जाता था. उसे बढ़िया  खानपान दिया जता था...उसके शरीर मालिश की जाती थी...यानि कि  उसकी अच्छी तरह देखभाल की जाती थी. परन्तु आज की स्थिति से सब अवगत हैं. हॉस्पिटल से घर आते ही स्त्रियाँ काम-काज में लग जाती हैं. सागरिका की भी बेटी एक साल की ही थी. निशचय ही ऐसी प्रतिकूल परस्थितियों में वो  post partum depression से भी गुजर रही होगी. कोई super woman या कहें super human being ही ऐसी प्रतिकूल परिस्थितयों में भी बिलकुल सामान्य रह सकता है. पर बिना औरत की स्थिति को समझे उसे मानसिक रोगी घोषित कर देना बहुत आसान है. 


अनुरूप ने पहले दिन ये भी आरोप लगाया कि सागरिका ने उसपर कई बार हमले किए...तस्वीरों में सागरिका ना तो इतनी शक्तिशाली दिखती हैं और ना अनुरूप पिद्दी से.  जरूर दोनों बहस करते  हुए आमने-सामने आए होंगें और हो सकता है दोनों ने ही एक दूसरे पर हमले किए हों. हाँ, यहाँ सागरिका सर झुकाकर चुप नहीं बैठी होंगी पर यह तो ऐसा ही हुआ कि किसी को धकेलते हुए दीवार तक ले जाओ..फिर वह बचाव के लिए कुछ करे तो उसे मानसिक रोगी घोषित कर  दो. 

खैर यहाँ अनुरूप भी कम मानसिक तनाव में नहीं हैं और शायद आवेश में सागरिका को सबक सिखाने की सोच मिडिया में पति-पत्नी के बीच तनाव की बात कह गए. अगले दिन ही अपनी बात से मुकर भी  गए पर इस क्रम में अपनी और भारत सरकार की सारी मेहनत पर पानी फेर गए. नॉर्वे ने कस्टडी केस की सुनवाई बंद कर दी और अब तो उनके पास कारण भी है कि बच्चों के माता-पिता में आपसी सौहार्द नहीं है और ऐसे माहौल में बच्चों का विकास सही तरह से नहीं हो सकता.

हालांकि बच्चों के माता-पिता की ऐसी मानसिक स्थिति तक पहुंचाने के जिम्मेवार नॉर्वे सरकार की CWS  ( child welfare services  ) ही है. एक अमेरिकन अखबार ने सही ही कहा है...'Norway Drives the Parents Crazy'.  उन्हें इस पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए. क्या नॉर्वे के दूसरे दम्पत्तियों के बीच आपसी तनाव नहीं होते? इस दंपत्ति का तनाव इस चरम अवस्था तक पहुँच गया कि मिडिया तक बात पहुँच गयी. 

नॉर्वे के ही एक पत्रकार का एक आलेख पढ़ा जिसमे उन्होंने लिखा है कि 'नॉर्वे में बच्चों के हित की रक्षा के कानून बहुत कड़े हैं परन्तु नॉर्वे सरकार की गलती ये है कि वे विदेशियों को इस क़ानून से सही तरीके से अवगत नहीं कराते. यही वजह है कि बहुत सारे विदेशी बच्चे नॉर्वे में 'फॉस्टर केयर' में दे दिए जाते हैं. करीब बीस रशियन बच्चे भी फ़ॉस्टर केयर में है. एक लड़का ८ वर्ष पूर्व माँ से छीन लिया गया और माँ को जबरदस्ती उसके स्वदेश वापस भेज दिया गया. नॉर्वे में रह रही ही एक विदेशी महिला दो साल से अपने बेटे से नहीं मिल पाई है. 

बस प्रार्थना है की अनुरूप-सागरिका के साथ ऐसा ना हो. शायद उन्हें  अपने बच्चे वापस मिल जाएँ. वे भारत लौट आएँ तो अनुकूल परिस्थितियों में अपने देश के माहौल .अपने करीबियों के बीच रहकर उनके आपसे रिश्ते भी सुधर जाएँ और बच्चों को भी अपने माता-पिता वापस मिल जाएँ.

इन सारी बातों ने मुझे अपने बचपन की एक घटना याद दिला दी. तब मैं स्कूल में थी. मेरी एक सहेली थी मीता . उसकी माँ एक हंसमुख महिला थीं. पड़ोसियों से.. हम बच्चों से बहुत ही प्यार से बात करती थीं. पिता कड़क  स्वभाव के लगते थे. बच्चों से ज्यादा बात नहीं करते थे. पर तब अक्सर सारे पिता ऐसे ही होते थे..घर में कम और बाहर ज्यादा बातें किया करते थे. इसलिए हमें कुछ अलग सा नहीं लगता .
एक दिन हम उसके घर के  पास ही खेल रहे थे कि उसके घर से ऊँची-ऊँची आवाजें सुनाई देने लगीं. मीता ..उसका छोटा भाई और हम कुछ बच्चे बाहर दरवाजे के पास दुबक कर सुनने लगे. मीता के नाना-नानी आए हुए थे . उसकी माँ जोर-जोर से ऊँची  आवाज़ में बोल रही थीं.." ये इतना  मारते-पीटते हैं...आपलोग कभी कुछ नहीं कहते..वगैरह वगैरह.." मीता के  पिता गरज रहे थे, "ये पागल हो गयी है..कुछ भी बोलती है..इसे पागलखाने में भर्ती  कराना पड़ेगा " मुझे लगा...उसके नाना-नानी उनका विरोध करेंगें...पर शब्दशः तो नहीं याद पर दोनों अपनी बेटी को ही दोषी ठहरा रहे थे कि "उसे गुस्सा क्यूँ दिलाती हो..आदि..आदि "...मीता की माँ के मन में शायद बहुत दिनों का गुबार जमा था..वे बोलती जा रही थीं...इस पर उसके माता-पिता भी उसके पति के सुर में सुर मिलाने लगे कि ऐसे बोलोगी तो सचमुच  तुम्हे पागलखाने में भर्ती कराना  पड़ेगा" ये सुनते ही...मीता और उसका छोटा भाई दौड़ कर अंदर जाकर माँ से लिपट कर रोने लगे.  उसकी माँ उन्हें लेकर भीतर चली गयीं. सब शांत हो गया. हम बच्चे लौट आए. कुछ दिनों बाद उसके  नाना-नानी चले गए और मीता की माँ हमसे वैसे ही प्यार से पेश आती रहीं.
कभी कभी कॉलोनी की  महिलाओं की खुस-फुस कानों में पड़ जाती कि बेचारी के मायके वाले ही साथ नहीं देते तो वो क्या करे ..पर वे दिन अपनी दुनिया में ही मगन रहने वाले थे .हम सब भूल गए. इतने दिनों बाद आज ये घटना याद आ गयी कि अगर स्त्री प्रतिकार करे...विरोध करे तो उसे झट से पागल घोषित कर दो. 

अंशुमाला की एक पोस्ट याद आ रही है जिसमे उन्होंने एक प्रसंग का जिक्र किया था 


अभी हाल में ही राजस्थान गई थी तो वहा जा कर ऊंट की सवारी तो करनी ही थी ,  मेरे बैठने के बाद जब पति देव अपने ऊंट पे बैठने लगे तो वो जोर जोर से चिल्लाने लगी और दोनों ऊँटो के मालिक हाथों से उसका मुंह बंद करने लगे जब मैंने कहा की ये क्यों चिल्ला रही 
"औरत है न इसलिए ज्यादा चिल्लाती है "
निश्चित रूप से ये सुनने के बाद मेरे अंदर की औरत या कह लीजिये नारीवाद को जागना ही था | मैंने भी जवाब दिया की "औरत यू ही नहीं चिल्लाती है ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी चिल्ला रही है , क्या भूखी है " 
"नहीं मैडम खाना तो खा चुकी है"
"तो ज़रुर उसके बच्चे से अलग किया होगा"
" तो क्या करे ,सारे दिन  बच्चे के पास ही बैठी रहेगी तो फिर आप लोगो को घूमने कौन ले जायेगा | 
देखा मैंने कहा न ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी वो चिल्ला रही है उसके बच्चे से उसे अलग करोगे तो क्या वोचिल्लाएगी नहीं | 

बुधवार, 14 मार्च 2012

सच हुआ मैराथन में भाग लेने का सपना !!


तंगम,अनीता,मैं और राजी  
'मैराथन' शब्द से परिचय ओलम्पिक का टेलीकास्ट देखते हुए हुआ था. देखती, छोटे-छोटे कदमो से लोग लम्बी दूरी तय करते हैं...बस इतना ही पता था 'मैराथन' के विषय में. फिर परिचय हुआ दुबई में रहनेवाले 'हिमांशु जोशी' से जो जल्द ही एक बहुत अच्छा दोस्त बन गया ...वैसे उसके सन्दर्भ में ये 'अच्छा' शब्द पहली बार प्रयोग कर रही हूँ....वरना उसने मुझे इतना चिढाया है...जितना मेरे दोनों छोटे भाइयों ने नहीं चिढाया होगा...और मुझसे डांट भी इतनी खाई है..जितनी अपनी दो बड़ी बहनों से नहीं खाई होगी.....मेरी हरेक पेंटिंग  की बखिया उधेड़ देता..जैसे घोड़ों के हवा में उड़ते बालों को जनाब कहते कि लग रहा है घोड़ों को करेंट लग गया है...और उनके बाल खड़े हो  गए हैं...(ये  कथा फिर कभी..पूरी एक पोस्ट ही बनती है:)) हिमांशु को दौड़ने का शौक है और वो हमेशा मैराथन में हिस्सा लेता है. पूरे 42 किलो मीटर की रेस तय करता है . अक्सर मैराथन के मजेदार किस्से सुनाया करता.  

मेरी सहेली शम्पा के पति 'अभिजीत' को भी दौड़ने का शौक है...पर शम्पा उनकी इस आदत से परेशान ही रहती है. एक बार अभिजीत, शम्पा को  रिसीव करने गए और पता चला बस के आने में अभी देर है...उन्होंने कार में से अपने रनिंग शूज़ निकाले और दौड़ने चले गए. इधर शम्पा मय बच्चों और  सामान सहित हाइवे पर अकेली खड़ी पति का इंतज़ार करती रही. हिमांशु को जब  के 'अभिजीत' के  विषय में बताया तो उसने कहा 'मैं जब मुंबई आऊं तो मेरी उनसे दोस्ती करवा दीजियेगा...हमलोग साथ दौड़ेंगे " मैने कहा .."ना बाबा मेरी सहेली मुझे काट डालेगी ( और इसमें मुझे जरा भी शंका नहीं थी )...पहले ही वो उनके इस शौक से परेशान है." 


पर मैने देखा है...अनहोनी फिल्मो और कहानियों में कम होती है...वास्तविक जिंदगी में ज्यादा. एक साल के अंदर ही शम्पा के पति अभिजीत ने ONGC  की नौकरी छोड़ कर एक मल्टीनेशनल कम्पनी ज्वाइन कर ली और उनकी पोस्टिंग दुबई में हो गयी. दौड़ने के शौक ने उन्हें हिमांशु से मिला दिया और अब दोनों एक ही 'रनिंग क्लब' के मेंबर हैं....बहुत अच्छे दोस्त हैं और दुबई-दोहा-शारजाह-अबू धाबी सब जगह के मैराथन में एक साथ  हिस्सा लेते हैं. जनवरी में मुंबई भी आए थे मैराथन में भाग लेने.

जब मुंबई में मैराथन का आयोजन शुरू हुआ तो मेरे पूरे परिवार ने भाग लेने की सोची...पर हर साल कोई ना कोई अड़चन आ जाती...कभी बच्चों के एग्जाम...कभी पतिदेव का कोई जरूरी काम...कभी रिश्तेदारों का आगमन...और टलता ही रहा. मेरी सहेली राजी ने भी सोच रखा था...पर टल ही जाता और हर बार 'मैराथन' बीत जाने पर हम यही कहते.."इस साल भी भाग नहीं ले पाए..." इसीलिए इस बार जैसे ही राजी ने अखबार में पढ़ा कि 'DNA Women's Marathon ' का आयोजन हो रहा है..उसने तुरंत मुझे और तंगम को SMS किया...हमलोग  सहर्ष तैयार हो गए.
कुछ करणवश हमारी और सहेलियों ने तो भाग नहीं लिया पर  एक सहेली 'अनीता' ने  बड़ी हिम्मत दिखाई. मुझे, तंगम और राजी को तो मॉर्निंग वॉक  की आदत है. पर अनीता ने करीब साल भर से मॉर्निंग वॉक नहीं किया.... और मैराथन के लिए एक महीने से भी कम का समय था. पर उसने निश्चय किया उसे भाग लेना ही है और उसपर दृढ भी रही. पहले दिन से ही पूरे एक घंटे का वॉक शुरू किया. उसे बीच में घुटनों में  दर्द की वजह से डॉक्टर  के पास भी जाना पड़ा...पर डॉक्टर ने भी दवा दी और आश्वस्त किया...कि वो प्रैक्टिस जारी रख  सकती है . वो घुटनों की मालिश करती...नी-पैड पहनती ..पर प्रैक्टिस में कोई कोताही नहीं की.

धीरे धीरे लोगो को पता चलने लगा...और हम सहेलियों को अजीबोगरीब प्रतिक्रियाएँ मिलतीं...कोई कहता.."पागल हो गयी हो..इस उम्र में दौड़ने की सोच रही हो??"..कोई कहता.."दूसरा कोई काम नहीं है क्या??"...तो कोई कहता.."अरे !! हम तो ये सुनकर  हँसते हँसते लोटपोट हो गए." पर हमलोग पर कोई असर नहीं होता कहने वाले को ही कह देते.."आपलोगों को भी भाग लेना चाहिए "


अब तक तो हम तेज-तेज चलते थे पर अब दौड़ने की प्रैक्टिस करनी थी. पहले कभी हम सोचते भी कि थोड़ा दौड़ना भी चाहिए क्यूंकि शरीर को किसी भी व्यायाम की आदत पड़ जाती है...और कोई असर नहीं होता...इसलिए बीच-बीच में व्यायाम में फेर बदल कर शरीर को शॉक देना जरूरी है. पर फिर भी हमें झिझक सी होती और हम दौड़ नहीं पाते. पर अब तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी...बिंदास सड़क के किनारे दौड़ने का अभ्यास  किया जाता . हम सोचते भी देखने वाले शायद सोच रहे हों..."ये अचानक क्या हो गया है..इन सबको.." पर कोई पूछता भी नहीं कि बताएँ.."मैराथन में भाग लेने जा रहे हैं...:)..तंगम ने मजाक में कहा भी.."हमें अपनी टी शर्ट पर लिख लेना चाहिए "Training  for Marathon "

अपने मित्र हिमांशु जोशी को जब बताया तो उसका रिएक्शन था..."woww.. 42 kms ??"
"नहीं पागल हो क्या..."
"woww 21 kms ?"
"जी नहीं...इतना हमारे वश का नहीं.."
"तो क्या आप बिल्डिंग का चक्कर लगाने जा रही हैं..." चिढाने का ऐसा नायाब मौका भला वे कैसे छोड़ते .
यह पहला मौका था और हमने 5 किलो मीटर के "Fun Run " में भाग लेने की सोची . यहाँ कोई कम्पीटीशन नहीं था...बस भाग लेना ही महत्वपूर्ण था. कई लोगो को लगता है...5 किलोमीटर तो कुछ भी नहीं...पर तेज चलना और दौड़ना दोनों बिलकुल अलग चीज़ें हैं. अनुभव से कह रही हूँ...भले ही दो घंटे आप ब्रिस्क वॉक कर लें...पर पाँच मिनट के लिए दौड़ने में भी बुरा हाल हो जाता है.

खैर चिढाने का कोटा पूरा हो जाने के बाद हिमांशु  ने  काफी उपयोगी टिप्स दिए..प्रैक्टिस करने का तरीका भी बताया...जो हमारे बहुत काम आया.
राजी की एक सहेली 'भारती' जो "Health n Nutrition "  मैगज़ीन की  एडिटर है...वो भी हमेशा मैराथन  में भाग लेती है. उसने भी काफी उपयोगी टिप्स दिए..जैसे च्युइंग गम चबाते रहना चाहिए ...जिस से गला नहीं सूखता...हिमांशु और भारती दोनों का बहुत बहुत  शुक्रिया 

एक बार फैसला ले लेने के बाद हमारी दौड़-भाग शुरू हो गयी...सुबह छः बजे प्रैक्टिस..फिर घर का काम ख़त्म कर...कभी तो रजिस्ट्रेशन के लिए जाना... कभी आयोजकों द्वारा दी हुई चीज़ें कलेक्ट करना. रजिस्ट्रेशन फी ३५० रुपये थी..और सारा पैसा चैरिटी  में जाने वाला था.Cervical Cancer '..' Girl child education.'...'Violence against women " तीन मुद्दों में से एक का चयन करना था. और पैसे उसी चैरिटी को जाने वाले थे. इस मैराथन के स्पौन्सर्स ने भाग लेने वालों को एक सुन्दर सा थैला .उसमे एक बढ़िया टी-शर्ट...क्रीम..परफ्यूम..शुगर फ्री..एनर्जी ड्रिंक...हैण्ड सैनीटाईज़र "...तमाम तरह की चीज़ें दीं. हम सब, पारिवारिक और सामाजिक दायित्व भी बदस्तूर निभाते रहे...होली भी इसी बीच ही आनी थी. ८ मार्च को होली और ११ मार्च को मैराथन. प्रैक्टिस मिस करने का सवाल ही नहीं. और होली के दिन भी सुबह छः बजे मैं प्रैक्टिस करते हुए सोच रही थी..." कितनी तेजी से बदलाव आ रहा है.. "यहीं होली के दिन .  मेरी नानी-दादी...मुहँ अँधेरे उठ कर बिना ब्रश किए ..लकड़ी के चूल्हे पर बड़ा सा कड़ाह चढ़ा कर पुए तलना शुरू कर देती थीं"....."माँ-मौसी-चाची...चाय पीते हुए गैस के चूल्हे पर पुए तलती हैं"....और यहाँ" मैं रात के साढ़े बारह बजे तक पुए तलने के बाद सुबह छः बजे पार्क में हूँ...घर जाकर फिर से पुए तलने हैं...होली खेलनी है...पारिवारिक मित्रों के साथ होली-लंच करना  है" ....हम सब सहेलियाँ कभी कभी रात के दो बजे...पार्टी अटेंड कर लौटतीं  पर एक दिन भी प्रैक्टिस नहीं छोड़ी...और लगने लगा..पढाई -लिखाई से ज्यादा कष्टदायक खेल-कूद और व्यायाम की  गतिविधियाँ  हैं.

११ मार्च २०१२ मैराथन का दिन भी आ पहुंचा. हमारी दौड़ "बान्द्रा - कुर्ला कम्प्लेक्स" से साढ़े आठ बजे शुरू होने वाली थी. हमारे परिवार जन और सहेलियाँ.. "कनिष्क, कृष्णदेवन  , अनघा, शर्मिला,वैशाली ,सुरेश रोड्रिगो ,इन्गेल्बर्ट और  आएशा" ...अपनी सन्डे की सुकून भरी सुबह की नींद का परित्याग कर हमें चीयर करने हेतु ...हमारे साथ साढ़े छः बजे ही घर से निकल पड़े. वहाँ पहुँच कर तो पाया एक उत्सव सा माहौल  है. हमारी उम्र की महिलाओं की भी कमी नहीं थी. ब्रह्मकुमारियों का भी एक बड़ा सा दल था. जो सलवार कुरता और साड़ियाँ पहने थीं. स्टेज पर खड़े फिटनेस इंस्ट्रक्टर 'मिकी मेहता ' वार्म अप करवा रहे थे. हम सहेलियों ने भी  थोड़ी स्ट्रेचिंग और प्राणायम किया. 'दीपिका पादुकोणे' झंडा दिखा कर रेस शुरू करने वाली थीं....पर ये हिरोइन्स  समय पर पहुंची हैं कभी??...हालांकि ५ मिनट ही लेट थीं...पर भाग लेने वालों ने बहुत शोर मचाया..'हमें नहीं चाहिए दीपिका की मौजूदगी..रेस शुरू की जाए...." वैसे भी मुंबई में इन सितारों को ज्यादा भाव नहीं मिलता..वो स्टेज पर खड़ी हाथ हिलाती रहीं..और सारे प्रतिभागी नाक की सीध में चलते रहे..हाँ, हमारे साथ आए लोगो ने पास से खूब सारी तस्वीरें खींचीं. 'तारा शर्मा' और 'रागेश्वरी' ने हमारे साथ दौड़ में हिस्सा भी लिया.

रास्ते पर जगह-जगह वौलेंटीयर्स .. पानी की बोतलें लेकर खड़े थे... एम्बुलेंस भी खड़ी  थी और मोबाइल टॉयलेट की भी व्यवस्था थी. प्रतिभागियों के रिश्तेदार भी रास्ते  में खड़े  हमारा हौसला बढ़ा रहे थे...'स्माइल'...'यू कैन डू इट'...'ब्रावो'..."जस्ट हाफ द रन लेफ्ट"..."जस्ट लास्ट लैप..." .कई  बहुत रोचक दृश्य भी मिल रहे थे...चटक गुलाबी साड़ी पहने एक लड़की भी साथ में दौड़ रही थी...एक पोलियो ग्रस्त लड़की भी थी...दो सत्तर के करीब महिलाएँ भी थीं...तस्वीरें लेने की इच्छा पर  किसी तरह काबू किया..वरना सहेलियों से बहुत पीछे रह जाती...मैं राजी और तंगम...साथ -साथ ही थे..कभी कोई जरा सा आगे हो जाता कभी कोई जरा सा पीछे...तंगम का आइडिया था...हम तीनो हाथ पकड़ कर फिनिशिंग लाइन पार करेंगे और और हमने ३५ मिनट से भी कम समय में ५ किलो मीटर पूरा कर लिया.( क्यूंकि शुरू में तो भीड़ में हमें तेज चलने की जगह ही नहीं मिल पा रही थी. ) तंगम के बच्चे 'इन्गेलबर्ट' और 'आएशा'...ने कई जगह हमारे साथ दौड़ते हुए हमारी तस्वीरें लीं. 'इन्गेल  ' ने तो फिनिशिंग लाइन के पास...हमारे सामने दौड़ते हुए वीडियो भी बनाया...वीडियो में देख कर लग रहा है...'हम सचमुच इतना तेज ..दौड़े' :) .फिनिशिंग लाइन के पास हमारे साथी..हमारे स्वागत के लिए खड़े  थे. वे सब भी आश्चर्यचकित थे...उन सबने भी सोच रखा था..एक घंटा तो हमें लग ही जाएगा. सबने कैमरा खटकाना  शुरू कर दिया. 

अनीता हमसे पीछे थी....हम उसका स्वागत करने के लिए किनारे खड़े हो गए...वो थकी मांदी चल कर आ रही थी...उसे देखते ही हम इतने जोर से चिल्लाये कि उसने भी जोश में दौड़ना शुरू कर दिया और मैं, तंगम,राजी उसका हाथ पकड़ कर फिनिशिंग लाइन तक उसके साथ दौड़े. ये देख  कर कुछ अखबार वाले भी कैमरा लेकर इस क्षण को कैद करने दौड़ पड़े. फिनिशिंग लाइन के पास बड़े अक्षरों में होर्डिंग लगी थी  "Congrats, You  have  created History !!  "  दूसरे  इतिहास की बात जाने  दें..पर अपने-अपने परिवार का इतिहास तो हमने जरूर बनाया. सबसे अच्छी बात लग रही थी...कई  सारी  महिलाओं  के पति छोटे छोटे बच्चों को गोद में उठाये या ऊँगली पकडे...अपनी पत्नी की तस्वीरें उतार रहे थे और  कहते नहीं थक रहे थे "I am proud of U " {ऐसा मौका औरतों की जिंदगी में  कम ही आता है :)} सबके परिवारजन बहुत खुश थे...सबके चेहरे गर्व से चमक रहे थे.


इसके बाद पार्टियों का दौर चल रहा है...रेस के बाद हमें एक मशहूर  कैफे में ट्रीट दी गयी. परिवार वाले लंच पर ले गए. योगा बैच ने अलग पार्टी दी. ..तो ब्लॉग दोस्त कब दे रहे हैं पार्टी :):)

हमारे चीयर लीडर्स  



ब्रह्मकुमारी का दल  

             चिथड़े पहने बेचारी अमीर लड़की  

परिवारजन और सहेलियाँ  

आएशा ,तंगम,इन्गेल,और सुरेश रोड्रिगो..तंगम का उत्साहित परिवार  

अनीता को चीयर करती शर्मिला,तंगम और राजी  

अनीता के रेस पूरी करने की ख़ुशी वैशाली के चेहरे पर  

माँ के प्रयास पर गर्वित कनिष्क  

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

साड्डा चिड़ियाँ दा चंबा वे ...(कहानी --२ )


(इस किस्तों वाली कहानी का उपयुक्त शीर्षक नहीं मिल रहा था और मेरी सलाहकार वंदना अवस्थी दुबे ने (सोचती हूँ...इन्हें ऑफिशियल सलाहकार ही अपोयेंट कर लूँ...पर डर है,कहीं मोहतरमा लम्बी-चौड़ी फीस न फरमा  दें :)) सलाह दी...हर किस्त का एक अलग शीर्षक रख लो और बात मुझे जंच गयी...पूरी कहानी का शीर्षक  ढुंढने की  कवायद मुल्तवी  }

कहानी अब तक--
(जया के कविता संग्रह को एक बड़ा पुरस्कार मिला. पत्रकार पूछने लगे, उसकी कविताओं में इतना दर्द कहाँ से आया ?और जया पुरानी यादों में खो गयी.. दो बड़े भाई और दो बड़ी बहनों..माँ-बाबूजी के संरक्षण में बचपन बड़े प्यार में बीता...बाबूजी के दुनिया से चले जाने के बाद उसने सोचा नौकरी करके माँ की देखभाल करेगी..पर एक पड़ोस के लड़के ने ख़त भेजकर..रास्ते में रोक कर अपने प्यार का इजहार शुरू कर दिया..उसने हर बार उसे मना  कर दिया...)
गतांक से आगे ---


कुछ दिन यूँ ही डरते-डरते बीत गए. पर   -धीरे महसूस किया...अब दो आँखें पीठ पर नहीं जड़ी होतीं...ना ही किसी के द्वारा घूरे जाने का अहसास ही होता...और वह थोड़ी निश्चिन्त हो गयी...लगता है 'राजीव समझ गया और कोशिश छोड़ दी....चलो अच्छा हुआ बला टली...अब यूँ डर के साए में नहीं जीना पड़ेगा...अब इत्मीनान से कहीं आ जा सकती है. बिजली का बिल जमा कर लौट रही थी कि देखा...राजीव के घर के बाहर ढेर सारे गद्दे चादरें..सूखने को फैलाई हुई हैं. पड़ोस की मिसेज मिश्रा ...मिसेज गुप्ता से  कह रही थीं..'लगता है...राजीव की अम्मा आई हुई हैं....कभी मिश्रा जी के पास तो कभी बेटे के पास...एक पैर इहाँ त एक पैर उहाँ रहता है,उनका....आते ही झाड़-पोंछ में लग जाती हैं...चलते हैं शाम को मिलने...' 

उसने ऐसे ही उत्सुकता से एक नज़र मुड कर देखा...पर कोई नज़र नहीं आया...वो घर चली आई.

दूसरे दिन अलसाई सी लेटी थी कि तीन बजे के करीब...दरवाजे पर जोर की खट-खट हुई..."अरे कोई है..?"
हडबडा कर उठी तो देखा अधेड़ उम्र की एक औरत खड़ी थीं...उसके दरवाज़ा खोलते ही...उसे ऊपर से नीचे तक घूरने लगीं...उसे थोड़ा अजीब सा लगा...असमंजस में चुप खड़ी रही..जब उनका घूरना बंद नहीं ही हुआ तो पूछ लिया..."किस से मिलना है??.."
"अपनी माँ को बुलाओ"
"आप बैठिये अभी बुलाती हूँ..."
माँ भी लेटी थीं...बताने पर " कौन है...." कहती...हडबडाते हुए सर पर पल्ला ठीक करते बैठक की तरफ भागीं "
"का हाल है..नरेस की माँ....बढ़िया हुआ यहाँ चली आयीं...अपना घर होते हुए काहे बेटा-बहू के आसरे रहतीं.."
"नहीं आसरे की बात नहीं है...ये घर भी इतने दिनों से बंद पड़ा था....इसकी देख-रेख करनी थी...रहने पर ही पता चलेगा ना...किधर क्या मरम्मत कराना  है..इसीलिए यहाँ चली आई " 

वो एक कोने में खड़ी थी...माँ ने उसकी तरफ  मुड़ कर देखा..."जरा  सरबत-पानी लेकर आओ...." फिर उसकी आँखों में सवाल देख खुद ही जबाब दे दिया.."अरे राजीव की माँ हैं...तुमको याद नहीं होगा...कम ही मुलाकात हुआ है...कभी जब हमलोग आते थे तो ये नहीं और ये आती थीं तो हमलोग नहीं.." फिर उन महिला की तरफ मुड़ कर पूछा.."आपने पहचाना,इसे...जया है.."

"हाँ अच्छी तरह पहचाना...अब तो एही बाकी  है ना सादी  के लिए....बाकी सबको तो सरमा जी निबटाइए  के गए हैं.."

उनका इस तरह 'निबटाइए  के' बोलना..उसे अच्छा नहीं लगा...पर चुपचाप मुड़ गयी. शरबत देने के बाद ...वह वापस कमरे में आ कर लेट गयी..अचानक उनकी बातचीत में अपना नाम सुन..उसके कान खड़े हो गए . राजीव की माँ कह रही थीं..." छोटकी बेटी की सादी के लिए का सोची हैं..?"
"अभी तो कुछ नहीं...बी.ए.का इम्तिहान दी है..रिजल्ट आ जाए...तब देखें..कहती तो है कि अभी और आगे पढेंगे...नौकरी करेंगे..."
"अरे का लड़की जात से नौकरी करवाईयेगा....सादी-ब्याह का सोचिये.."

और माँ की दुखती रग छू गयी हो जैसे...बिना देखे ही वो बता सकती थी..उनकी आँखें गंगा-जमुना बन गयी होंगी...जब भी उसकी बात होती...माँ बाबूजी को याद करके रोने लगतीं..क्या क्या अरमान थे उनके..अभी भी रुआंसी सी बोल रही थीं.." हाँ..देखना ही होगा...इसके बाबूजी तो रहे नहीं...बीच मझधार में छोड़ चले गए...हमेशा कहते थे इसके लिए तो राजकुमार जैसा दूल्हा लायेंगे....क्या पता क्या लिखा है..इसकी किस्मत में.."
"अरे ऐसा क्यूँ कहती हैं....सरमा जी का अरमान था तो राजकुमार जईसा दुल्हा ही मिलेगा इसको.."
"आप बताइए...राजीव को भी तो नौकरी में आए बहुत दिन हो गया...कब कर रही हैं...ब्याह  उसका..?"

"अरे अब का बताएँ...दू साल हो गया नोकरी लगे...लड्कीवाला लोग सुबह-साम दुआर अगोरता है...पर इ माने तब ना...अभी और परीक्षा देना है..अफसर बनना है...एही कहता है...मेरा तो उ लोग को चाय पिलाने में ही महीना का पांच किलो चीनी...और दू किलो चाय ख़तम हो जाता है. कम से कम सादी करे तो ई खर्चा त कम हो.."
"आप भी ना.."..हंसने लगीं  माँ...
"पर अब मान गया है...एक लड़की पसंद आ गयी है...."
"ओह फिर देर काहे की...जल्दी से बजवाइये बाजा.."
"इसीलिए तो इहाँ आए हैं.."
"समझी नहीं..." माँ सचमुच कुछ नहीं समझी थीं...पर वो सब समझ रही थी...उसका दिल बैठ गया...उनकी चाय की चर्चा सुन चाय बनाने उठी थी..धम से वापस चौकी पर बैठ गयी...'तो ये वजह है राजीव की माँ के यहाँ आने का"
"का नहीं समझीं....आपकी बेटी जया पसंद आ गई है राजीव को...अब तक सादी के नाम पर ना ना कहता था..अब अपने से कहा है...बात करने के लिए...त का करें...अब आपके घर में कोई मरद माणूस भी नहीं है ना...किस से बात किया जाए...इसीलिए हमको आना पड़ा...नहीं तो औरत लोग कभी ई सब काम करती है...पर अब का करें...दुसर कौनो उपाए नहीं था..."
माँ शायद सकते में थीं...एक शब्द नहीं निकला उनके मुहँ से....
"का सोच रही हैं....सरमा जी कहते थे ना..राजकुमार जैसा दूल्हा ढुंढेंगे  त देखिए बिना मेहनते के दुआरी पर राजकुमार जैसा दूल्हा आ गेया "
" हाँ..भाग्य है लड़की का..पर बातचीत त मेरा दुनो बेटा ही करेगा...अब वही दोनों गार्जियन  है इसका.." शायद माँ को घर में कोई मरद मानुस नहीं होने की बात अखर गयी थी...उसे भी सुकून आया..डर रही थी कहीं माँ..एकदम से हाँ ना कह दें.

"ठीके है...खबर कर दीजिये उ लोग को...दुनो खुसे होगा...भाग-दौड़ का मेहनत बच गया....अब चलेंगे...राजीव के ऑफिस से आने का टाइम हो रहा है..जब तक हियाँ हैं..चाय-पानी त  दे दें.." 

"आप चाय तो पी के जाइए...जयाss..जयाss " माँ पुकार ही रही थीं...पर राजीव की माँ बीच में ही उन्हें रोक कर उठ गयीं.." अब त मिठाईये खायेंगे...चाय ओए रहने दीजिये"  
उसने भी राहत की सांस ली...उसका भी मन नहीं था उनके सामने जाने का 

***
माँ घबराई सी अंदर आयीं...' जया..बेटी...सुना तुमने क्या कह रही थीं...राजीव की माँ..."
माँ को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था...खुश भी थी...और उनकी आँखें भी भरी जा रही थीं...
पर उसने सख्त चेहरा बनाए हुए कह दिया.." सब सुना...पर  मैने पहले ही बता दिया है...शादी नहीं करनी..अभी और पढूंगी...नौकरी करुँगी.."

ज़िन्दगी में पहली बार माँ ने जोर से डांटा.."ऐसे कुलच्छन बोल नहीं बोलते.... कोई लड़की अनब्याही रही है आजतक...भगवान ने भेजा  है..इतना सुन्दर घर और वर....उनकी इच्छा को ना नहीं करते..चल  मेरे साथ चल...दोनों भैया को फोन कर दे... "
"माँ....मैं कहीं नहीं जा रही....इतना हडबडाने की जरूरत नहीं है.
"अब इ शाम  को हम अकेले जाएँ...हमको तो नंबर मिलाना भी नहीं आता...काहे नहीं बात मान रही हो..सीमा और रीता को भी फोन कर देंगे...सबसे ई खुसखबरी बाँटने का मन हो रहा है..."
"कैसी खुसखबरी माँ...अभी से सब जगह  ढिंढोरा मत पीटो...आज तो हम कहीं नहीं जायेंगे...कल देखेंगे.." और इतना कह वह उठ कर चली गयी .

माँ भी शायद समझ गयीं...वो नहीं मानेगी..."ठीक है...कल ही चलना..पर जरा कागज़ कलम दे...सबको चिट्ठी तो लिख दें".. और सीधा चिट्ठी लिखने बैठ गयीं...ये माँ का एकदम बदल हुआ रूप था...अब तक रोने-धोने सोग मनाने वाली माँ, एकदम से कामकाजी हो उठी थीं .....माँ की पनीली आँखों में एक नई चमक आ गयी थी. एक नई जिम्मेवारी के अहसास से एकदम सीधी तन कर बैठी थी... माँ ने तो लम्बी चिठ्ठी दोनों भैया और दोनों दीदी को  लिखी... लिखते वक्त....खुद से ही बातें करतीं...कभी रोती..कि बाबूजी नहीं है..अपनी रानी बेटी की शादी देखने को...कभी खुश होती...कि कितनी चिंता थी..उन्हें जया की शादी की..भगवान ने घर बैठे लड़का भेज दिया. उसने भी लिफ़ाफ़े में दो लाइन लिख कर डाल दिया कि उसे शादी नहीं करनी...और कोई जल्दी नहीं है...जैसे छुट्टी मिले...वैसे ही लोग आएँ.

माँ नहीं मानीं..दूसरे दिन सबको फोन किया और कह दिया...कि चिट्ठी में सब विस्तार से लिखा है. बड़े भैया तो दो दिन बाद ही आ गए .बहनों ने भी पत्र के उत्तर में ,ख़ुशी जाहिर की और उसे समझाया कि बचपना ना करे. पर भैया जबतक आए...राजीव की माँ वापस चली गयीं थीं . भैया, राजीव से मिलकर बहुत खुश हुए कि होनहार लड़का है  और उनके मात-पिता से मिलने...उनकी पोस्टिंग पर चले गए. लौट कर बताया...."उनलोगों को जया बहुत पसंद है..."
"और लेन-देन की बात ?"...माँ ने आशंका से पूछा.

"मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं था...उन्होंने कहा दो-तीन दिन छुट्टी लेकर आऊं..फिर आराम से बातें करेंगे...तुम चिंता मत करो...जब खुद लड़की का हाथ मांग रहे हैं तो उनलोगों की ज्यादा डिमांड नहीं होगी....और अपने घर की लडकियाँ, अपनी  किस्मत लेकर आती हैं....सीमा और रीता  की शादी में भी कहाँ ज्यादा दहेज़ माँगा  उनलोगों ने..दोनों दामाद कितने अच्छे मिले हैं...और हम दोनों भाई की शादी में भी पिताजी ने नहीं ली ..तो जया की शादी में क्यूँ देना पड़ेगा....जो भी करेंगे हमलोग अपने शौक से करेंगे....और सबसे छोटी बहन है...पूरे धूमधाम से शादी करेंगे...उन्हें शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा..."

माँ की आँखों से झर झर आँसू गिरने लगे...वे बस आँचल से आँखें पोंछती रहीं...कुछ बोली नहीं...शायद मन ही मन भगवान  का शुक्रिया  अदा कर रही थीं.

"बस इतना कहा है कि सोने के सिक्के से लड़के का टीका कर जाऊं...."
"हाँ, लड़के का रोका तो करना होगा....चलो संदूक खोलती हूँ...देख लो...उसमे से क्या लेना होगा "

ये सब सुनकर थोड़ा मन उदास हो गया उसका..शुरुआत तो कर ही दी उनलोग ने मांगने की....दीदी-भैया के समय ऐसा कुछ तो नहीं कहा था.. पता नहीं आगे क्या होने वाला है." एक गहरी सांस ली उसने.

कानो कानो ये बात पूरे मोहल्ले में फ़ैल गयी. उसका बाहर निकलना  दूभर हो गया. वो तो ज्यादा लोगों  को पहचानती नहीं..लेकिन लोग उसे दिखा कर कहते..."यही है वो लड़की " उसे लगता पता नहीं लोग क्या सोच रहे होंगे......माँ के चहरे से उदासी की परत गायब हो गयी थी..वे सारा समय शादी का हिसाब-किताब ही करती रहतीं.

राजीव ने कई सारी परीक्षाएं दे रखी थीं. और उनके रिजल्ट आने शुरू हो गए थे.पता चला...पी.सी.एस. का इम्तहान पास कर लिया है और वो अब डिप्टी कलक्टर बन जाएगा. राजीव के माता-पिता घर आ गए और एक बड़ी पूजा रखी. वो तो पूजा में नहीं गयी पर माँ बता रही थी कि मोहल्ले के सारे लोग ,उसे बधाई दे रहे थे कि 'लड़की के पैर बड़े अच्छे हैं...रिश्ता जुड़ते ही बढ़िया नौकरी लग गयी.'
 
माँ ने तो बस इतना ही बताया.पर एक दिन पास-पड़ोस की औरतें घर पर आई थीं...उनमे से ही दबंग मिसराइन चाची ने कहा.."अरे जब मैने राजीव  की माँ से कहा, बहू के पैर बड़े शुभ हैं..आने के पहले ही...खुशखबरी आ गयी" तो तमक कर बोली.."अभी कैसी बहू...कोई छेका थोड़े ही हुआ है... " 
मैने भी सुना दिया.."क्या अब दहेज़ की चकाचौंध में भुला  गयीं  का...कि आप ही गयीं थीं..लरकी का हाथ मांगने...तब ना सोचीं कि कहीं बेटा अफसर बन जायेगा त बड़का गाड़ी में लोग आएगा रिश्ता ले के...नहीं जाना चाहिए था ना. "
 वो तो राजीव के बाबूजी उसी वक्त बात सम्भाल लिए.."अरे नहीं भौजी...जुबान देने के बाद...हम फिरने वाले में से नहीं हैं..' ..वरना मैं तो और सुनाने वाली थी." 

सबने हाँ में हाँ मिलाई..."पूरा सहर  जानता है....कि इन दुनो का सादी पक्का हो गया है...इसके भाई त सिक्का से लरिका का टीका भी कर गए थे...तुम कंजूस लोग ने लड़की को कुछ नहीं दिया..तो का शादी नहीं ठीक  हुआ"...बोलो सुधीर  की माँ...गलत कहे का हम?" मिसराइन चाची ने आगे जोड़ा.

"ना ना एकदम ठीक बात है..अरे लरकी का भाग है की ऊ अफसर बन गया "...ये सुधीर  की माँ थीं.
यह सब सुन उसे डर भी लगा और थोड़ा सुकून  भी...अच्छा हो, वे लोग कहीं और रिश्ता कर लें...और उसके मन की बात पूरी हो जाएगी"

पर उसने मन का शक दूर करने को सीधे राजीव से ही बात करने की सोची. इस बार वो रास्ते में राजीव के इंतज़ार में खड़ी थी. वो उसे देख  गर्व से मुस्कुराया और उसके कंधे थोड़े  और  भी चौड़े हो गए. वो नज़रें झुकाए बोली.. "आप बिलकुल फ्री हैं..कहीं और शादी करने के लिए....मेरी तरफ से एकदम स्वतंत्र"
"नहीं जी शादी तो हम आपसे ही करेंगे...और अब तो हम अफसर भी बन गए हैं...अब तो आपके भाई लोग की बराबरी में हैं ना?"..आज उसके स्वर में वो नम्रता और वो मनुहार नहीं था ..बल्कि..थोड़ा  विद्रूपता और उपहास था.

पर वो भी फैसला करके आई थी..दो टूक बात करेगी..." देखिए आपको दूसरी जगह अच्छा दहेज़ मिल जायेगा...मेरी माँ -भाई का  इतना सामर्थ्य नहीं है "
"ये सब बात लड़की लोग के मुहँ से शोभा नहीं देता...और ये सब तो परिवार के बड़े-बुजुर्ग तय करेंगे...हम आप क्या बोलें उसमे...फिर अजीब ढंग से मुस्कुरा कर बोला..." और आप सबसे छोटी हैं..इतना बड़ा मकान है...बाबूजी भी बढ़िया पैसा छोड़ कर गए ही होंगे...दो दो अफसर भाई है..आप क्यूँ चिंता करती हैं...जाइये जिस रूप पर इतना घमंड है ना...उसका साज-श्रृंगार कीजिए.....अब उसपर मेरा हक़ है "

वो अंदर तक सिहर गयी...इस आदमी से उसकी शादी होने जा रही है...उसके स्वर में लेश-मात्र का प्यार नहीं था...ऐसा भाव था..जैसे उसने कोई जीत हासिल कर ली हो. और रूप पर घमंड??....जबसे बाबूजी गए हैं...उसने ठीक से आईना  तक नहीं देखा...घमंड क्या करेगी?

***

वो नीची निगाह किए, थके कदमो से लौट आई...कैसे गुजरेगा उसका आगामी जीवन?...माँ,भैया सब खुश हैं...उन्हें बिना भाग-दौड़ के एक अफसर दामाद मिल गया...वो कैसे मना करे...मना भी करे तो किस बात पर...कोई बड़ी वजह तो हो...सिर्फ इतनी सी बातचीत पर कैसे कोई निर्णय ले...और क्या पता शायद उसे इस बात का गुस्सा हो कि उसने बधाई नहीं दी...शर्मा कर हंस कर बात नहीं की..सीधा दो टूक बात की. छुई-मुई लडकियाँ ही लड़कों को अच्छी लगती हैं...लजा कर शर्मा कर आदाओं से बातें करने वाली लडकियाँ ही भाती हैं, उन्हें...शायद ये साफगोई उन्हें धृष्टता लगी हो...और फिर अंतर्मन ने जैसे आवाज़ दी.."क्या खुद पर 
भरोसा  नहीं...अगर पत्थरदिल भी होगा...तो उसे वो अपने प्यार और समर्पण से मोम बना लेगी. और खुद तो प्रपोज़ किया है....मन में प्यार तो होगा ही.....वो नाहक चिंता कर रही है. और सर झटक घर के अंदर आ गयी...गुनगुनाने की कोशिश की....खुश होने की कोशिश की...लेकिन दिल में जैसे किसी गहरी उदासी ने घर कर लिया था. मन को समझाया शायद माँ से दूर एक अजनबी घर में जाने के डर से मन उदास है.

पर डर बेबुनियाद नहीं  था. भैया छुट्टी लेकर शादी की बातचीत करने राजीव के पिताजी के पास गए  थे. लौट कर आए तो बहुत परेशान. उनकी तो अच्छी खासी मांगें थी. माँ से बता रहे थे..."पहला सवाल ही उन्होंने किया...कितने भर सोना देंगे??".महानगरीय जीवन के आदि भैया जब यह समझ नहीं पाए तो जोर का ठहाका लगाया, ससुर जी ने और विद्रूपता से बोले, "बहन की शादी करने चले हैं या मजाक करने...इतना भी नहीं जानते...या जानना नहीं चाहते....मतलब कितने ग्राम सोना देंगे....?

 ऐसे ही लम्बी लिस्ट,पकड़ा दी है उन्होंने,...कार...फर्नीचर ...फ्रिज ..टी.वी. से लेकर गृहस्थी का हर सामान है...और फिर उनके खानदान भर के कपड़े....शादी भी वे अपनी पोस्टिंग वाले शहर से ही करेंगे...यहाँ से नहीं...बारात का आना -जाना ठहराना...स्वागत -सत्कार सब..
और ऊपर से कैश " भैया  के स्वर में  चिंता थी...माँ ने भी आशंका से पूछा..."क्या कहा तुमने...."

"क्या कहता...कार में तो असमर्थता जता दी...बाइक के लिए हाँ की है......बाकी सब चीज़ें तो देनी ही पड़ेंगी...बार-बार सुना रहे थे..फलां जगह से इतने लाख का ऑफर है...वहाँ से अच्छी कार और कई  लाख रुपया का ऑफर है...वो तो हमने  आपको जुबान दी है...अब समाज में  नाक की बात थी..हमें क्या पता था...ये नालायक लड़का सचमुच पी.सी.एस. निकाल ही लेगा...लगा क्लर्की के लिए ये घर ठीक है...गुस्सा  तो इतना आ रहा था...कि  कह दूँ...वो सब पैसे चार दिन में चले जाएंगे...पर मेरे सोने जैसी बहन आपके आँगन में जायेगी तो आपका खानदान सँवर जायेगा....पर लड़की का भाई था...खून का घूँट पी कर रह गया...बोला नहीं कुछ "

"पर बेटा...कहाँ से होगा इंतजाम ?"

"हो जायेगा माँ...छोटे से भी  कहूँगा...हम दोनों भाई हैं...कर लेंगे  इंतजाम "

वह अंदर कमरे में सब चुपचाप सुन रही थी...अब उस से नहीं रहा गया...सारा भय-संकोच त्याग कर भाई के सामने आ बोली,"भैया....जरूरी है क्या यहाँ शादी करना....मैने तो पहले भी कहा था...मैं शादी नहीं करुँगी...नौकरी करुँगी "

"गुड़िया..क्यूँ चिंता करती है...सारा इंतजाम हो जायेगा...पिताजी ने इतना कुछ किया है हम सबके लिए...बस एक तेरी जिम्मेवारी छोड़ गए हैं...वो भी हम दोनों भाई पूरी नहीं कर सकते??...चिंता मत कर...शुरू शुरू में हर लड़केवाले ऐसे ही बातें करते हैं...फिर मान जाते हैं....जा एक कप चाय बना ला..." भैया ने स्नेह से बोला.

बाबूजी के जाने के बाद पहली बार किसी ने गुड़िया कह कर पुकारा था...आँखें भर आयीं उसकी....अच्छी भली ज़िन्दगी गुजर रही थी,भैया लोगों की...कहाँ से उस पर 'राजीव' की नज़र पड़ गयी और उसके भाई मुसीबत में पड़ गए.

इसके बाद देखती...शादी की जो भी बात करनी हो...भैया और माँ की बैठक छत पर बने कमरे में होती ताकि उसके कान में कुछ ना पड़ सके...पर दोनों का चिंताग्रस्त चेहरा और माथे की गहरी लकीरें उसे आभास दे देती कि सबकुछ सही नहीं है...और अपनी असमर्थता पर खीझ कर रह जाती वह.

धीरे-धीरे शादी की तैयारियाँ शुरू होने लगीं. राजीव ट्रेनिंग पर चले गए थे....थोड़ी राहत थी...कि अब  राजीव से मुलाकात नहीं होगी और फिर कुछ उल्टा-सीधा नहीं सुनना पड़ेगा.

शादी  की तारीख नज़दीक आने लगी....घर में  मेहमान भरने लगे...चाची,मौसी ,बुआ....सारे रिश्तेदार उत्साह से भरे  थे...इतने अच्छे घर में इतनी आसानी से जया का रिश्ता तय हो गया...बैठे -बिठाए इतना अच्छा लड़का मिल गया. माँ और दोनों भैया ने लेन-देन दहेज़ की बातें अपने तक ही रखीं थीं....बहनों को भी ज्यादा कुछ नहीं बताया  था...उसने दीदी से राजीव से मिलने की बात बतायी....और बताया कि किस रूखे  ढंग से उसने बात की...
दीदी ने उसे दिलासा दिया ..."उसे लड़कियों से कैसे बाते करते हैं नहीं पता होगा...कई लडको को नहीं होता...वे ऐसे ही ऐंठ कर बातें करते हैं. पर उसने खुद तुम्हे पसंद किया है....घबरा मत...सब ठीक होगा."

वो भी यही आस लगाए बैठी थी...कि शादी के  तीन दिन पहले...उसके नाम राजीव का ख़त आया...पहली बार कुछ कोमल अहसास ने सर उठाये....अच्छा था कि भैया के बेटे ने उसे ही पत्र थमाया.  धड़कते दिल से कमरे के कोने में जाकर ख़त खोला...सिर्फ एक पंक्ति थी...कोई संबोधन नहीं..."अगर बारात  लेकर नहीं आया तो क्या करोगी??.....राजीव " वो तो पत्ते सी कांपने लगी. संयोग वश दीदी आ गयी कमरे में और उसे यूँ कांपते देख.."क्या हुआ...जया??" कहते थाम लिया...वरना वो बेहोश ही हो गयी होती. दीदी  ने वो पत्र देख  लिया...वे भी घबरा गयीं...उसे बिठाया पानी पिला कर लिटा दिया...और दौड़ गयी भैया को बताने. उसी कमरे में दोनों भैया, माँ  और दीदी  की बैठक हुई. तय हुआ बड़े भैया और जीजाजी जाकर बात करें...आखिर माजरा क्या है?"

उसे तो तेज बुखार चढ़ गया....भैया और जीजाजी जब बात करके लौटे तो भैया बड़े निराश से थे...और जीजाजी गुस्से में. अब उस से कुछ भी छुपाने का कोई फायदा नहीं था...दो दिन बारात चढ़ने में रह गए थे...और यहाँ लड़के वालों के ये तेवर थे. भैया ने बताया, राजीव ने कहा..."वो तो उन्होंने ,अपनी होने वाली पत्नी को लिखा था...इनलोगों ने क्यूँ पढ़ी?"

जीजाजी नाराज़ हो गए..." वहाँ लड़की बेहोश हो गयी है...उसे तेज बुखार हो गया...और आप कह रहे हैं..मजाक था...ऐसा मजाक करता  है कोई"

इसपर सुना उसने कहा.."मजाक तो आपने देखा ही  नहीं..कैसा कैसा कर सकते हैं?"

भैया उन्हें शांत करके ले आए...पर आज भैया फूट फूट कर रो रहे थे...गलती हो गयी...ऐसे घर में बेटी नहीं देनी थी...उस दिन राजीव के पिताजी ने भी कहा था..."आपलोग कह रहे हैं...ये नहीं दे सकते...वे नहीं दे सकते...अखबार में पढ़ते हैं कि नहीं कि बहू जला दी गयी...मार दी गयी....डर नहीं लगता आपलोगों को.."
जीजाजी को फिर गुस्सा आ गया.."और आप सुनकर चुप रह गए?'

"नहीं मैने कहा...ऐसा क्यूँ   कह रहे हैं....तो कहने लगे....हम तो एक बात कह रहे हैं....हमलोग इतने नीच नहीं हैं..."...अभी आठ दिन पहले की बात है...क्या करता...सब तैयारी हो गयी है,शादी की. अब क्या कर सकते हैं..."

माँ अलग रोने लगीं.."अब तो शादी तोड़ दें ..तो इसकी शादी फिर कभी नहीं होगी....ज़िन्दगी भर बिनब्याही बैठी रहेगी...लड़की ससुराल जाएगी पर जी वहीँ टंगा रहेगा..पता नहीं  कैसी है...?"

उसे सामने की दीवार घुमती सी लगी....दोनों हाथों से सर थाम लिया....कुछ उपवास...कुछ घर छोड़ने का दुःख..और अब ये नयी टेंशन...जोरों का चक्कर आ गया ,सर में..इन लोगों की बातें भी  उस तक टुकड़ों टुकड़ों में ही पहुँच रही थीं....पलकें मुंदने लगी थीं...धीरे धीरे मुंदती पलकों वाले शरीर को बेहोशी ने अपने आगोश में ले लिया...
(क्रमशः )

फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

यह संयोग है कि मैंने कल फ़िल्म " The Wife " देखी और उसके बाद ही स्त्री दर्पण पर कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग सुनी ,जिसमें सुधा अरोड़ा, मध...